क्या दुनिया का अंत निकट है ?
एक वैज्ञानिक के ट्वीट के अनुसार आज से पाँच दिनो बाद यानी 21 जून को दुनिया का अंत हो जायेगा ।
एक नई थियोरी के अनुसार जो की माया कलेण्डर के पुनः विश्लेषण या कहे पुनः गणना पर आधारित है जिसके अनुसार 21 जून 2920 को दुनिया का अंत हो जायेगा । अपनी इस कथन के समर्थन में उस वैज्ञानिक का अपना तर्क भी है ।
तर्क के अनुसार आज से लगभग 268 वर्ष पूर्व कलेण्डर में किये गये बदलावों में इसका रहस्य छुपा है ।
पाओलो तागलोगुइन ( जिस वैज्ञानिक ने ये थियोरी दी है कि 21 जून को दुनिया का अंत हो जायेगा ) का मत है कि क़ायदे से मानव सभ्यता वर्ष 2012 में है । माया कलेण्डर के अनुसार 12 दिसम्बर 2012 को दुनिया का अंत होना तय था । पर हमारी दुनिया आज भी है, हम सब ज़िन्दा है, अपना अपना संघर्ष कर रहे है । तो फिर अचानक यह नई थियोरी कहाँ से आ गई जो पुरी मानवता के अस्तित्व पर ही प्रशन खड़ा कर रही है?
पाओलो के अनुसार आज से लगभग 268 वर्ष पूर्व जब दुनिया के देशों ने जूलियन कलेण्डर को छोड़ कर ग्रेगोरियन कलेण्डर का प्रयोग करना प्रारम्भ किया तब से मानव समाज हर वर्ष 11 दिनो की ग़लत गिनती कर रहा है । इसी कारण से हम हक़ीक़त में वर्ष 2012 में है । हर वर्ष पिछले 272 सालों से हम 11 दिन आगे होते चले गये । परिणामस्वरूप हम वर्ष 2020 में प्रतीत हो रहे है जबकि असल में हमें वर्ष 2012 में होना चाहिये ।
ग्रेगोरियन कलेण्डर के प्रयोग के प्रारम्भ से अब तक का समय = 1752 - 2020 = 268 वर्ष ।
11 दिन प्रति वर्ष के हिसाब से 268 सालों में छूटे दिन = 2,948 दिन ।
कुल छूटे वर्ष = 2,948 / 365 = 8 वर्ष ।
2020 - 8 = 2012 ।
तो इस हिसाब से यदी हम छूटे हुए दिनो को फिर से समायोजित कर लेते हैं तो माया कलेण्डर के अनुसार जो दिन इस दुनिया का अंतिम दिन होगा वो है आज से 5 दिन बाद - 21 जून 2020 के आस पास है |
क्या यह सम्भव है ?
चलिये इसे ज़रा गहराई से समझने का पर्यास करते हैं ।
इस थियोरी का मूल कि जब से ग्रेगोरियन कलेण्डर का प्रयोग होना प्रारम्भ हुआ है तब से हर वर्ष मानवजाती 11 दिन खो रही है, सरासर ग़लत है । करण कि जूलियन कलेण्डर का प्रयोग कई सदियों तक हुआ था - परन्तु इस में कुछ ख़ामियाँ थीं । इन ख़ामियों में सब से मुख्य ख़ामी थीं कि ये लीप वर्ष या अधि वर्ष की गणना सही सही नहीं हो पाती थी । इसी कारण सन 1582 के बाद से दुनिया भर के देश धीरे धीरे ग्रेगोरियन कलेण्डर का प्रयोग करने लगे । वर्ष 1752 में इस में ( ग्रेगोरियन कलेण्डर ) कुछ बदलाव किये गये, जिसके परिणामस्वरूप हम आज का ग्रेगोरियन कलेण्डर प्राप्त हुआ । वर्ष 1752 जब ग्रेगोरियन कलेण्डर में सुधार किया गया तब बस एक बार 11 दिनो का समायोजन किया गया था । यह समायोजन सिर्फ़ एक बार क़िया गया था । इसलिये यह कहना कि हम वर्ष 1752 से हर वर्ष 11 दिन खो रहे है पूरी तरह से ग़लत व आधारहीन है ।
दूसरा माया कलेण्डर के आधार पर संसार के अंत की जो तारीख़ तय की गई थी वो माया कलेण्डर से ग्रेगोरियन कलेण्डर में उसके समकक्ष तारीख़ के आधार पर करी गई थी । इसलिए ग्रेगोरियन कलेण्डर तथा जूलियन कलेण्डर के बदलाव व उसमें हुए परिवर्तनों का सहारा ले कर संसार के ख़त्म होने की नई तारीख़ देना बड़ा ही बेतुका सा लगता है ।
तीसरा जिस प्रकार हमारे वर्तमान ग्रेगोरियन कलेण्डर में 31 दिसम्बर को वर्ष की समाप्ति होती है तथा 1 जनवरी से नये वर्ष का आरंभ होता है, ठीक उसी तरह माया कलेण्डर में भी 21 दिसम्बर 2012, 13 वे बकतुन (वर्ष कह सकते है , जिस में 144,000 दिन होते है ) की समाप्ति का दिन था । इस हिसाब से अब हम माया कलेण्डर के अनुसार 14 वे बकतुन में है ।
नासा के अनुसार संसार के ख़त्म होने की कहनी कुछ इस प्रकार है - सुमेरीयन लोगो ने एक ग्रह जिसका नाम निबिरु था का पता लगाया तथा उनके अनुसार मई 2003 में इसे धरती से टकराना था, जिसके परिणामस्वरूप धरती का अंत हो जाता । जब मई 2003 में कुछ नहीं हुआ तो नई तारीख़ दी गई - 21 दिसम्बर 2012, जब वो तारीख़ भी बीत गई तो पाओलो तागलोगुइन ने 11 दिनो की गणना को आधार बना कर विनाश की नई तारीख़ का एक ट्विट कर के कुछ सुर्खियाँ बटोर लीं ।
मेरे मतानुसार जब तक हम मानव कोई बड़ी भूल ना करें प्रकृति हमें इस धरती पर सुरक्षित रखेंगी ।
आप सब का क्या विचार है - बताने का कृपा करें ।
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