जीवन का खेल और इसके नियम …… 2

मेरे पिछले ब्लोग (जीवन का खेल व इसके नीयम - 1 )  https://www.blogger.com/blog/post/edit/8690807551965942861/4010363514785029537 में हम ने सिक्के का एक पहलू - समस्या को देखने का  प्रयतन  किया । इस ब्लोग में हम सिक्के के दूसरे पहलू - समाधान को देखने का प्रयतन करेंगे । हम ने इस बात पर चर्चा की थी कि अनिश्चिताओं से भरे आज के समय में , जहाँ हम सब कुछ अपने काबू में नहीं कर सकते - सब कुछ अपने अनुसार नहीं कर सकते - वित्तीय स्वतंत्रता या आत्मनिर्भता बेहद जर्रूरी है । यदी आप वित्तीय रूप से आत्मनिर्भता हैं तो आप काफ़ी हद तक सुरक्षित हैं । वित्तीय आत्मनिर्भता बेहद ज़रूरी है ।



यह बात किसी से छुपी नहीं है कि आज हम सभी एक ऐसे समय में जी रहे है जो अनिश्चिताओं से भरा हुआ है । इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप आज क्या कर रहे है , आप कितना अच्छा कमा रहे है - आप आने वाले समय के प्रती १००% आस्वस्त हो कर नहीं रह सकते । अगर मै कहूँ कि आज हम सब कम ओ बेस उस कगार पर हैं कि रोज कुँआ खोदो तथा रोज पानी पियो, तो कोई अतिशयोक्तिपूर्ण बात नहीं होगी ।

हम सभी ने वर्तमान में ये देखा कि कैसे देखते ही देखते जो दुकान लाखों का व्यापार कर रही थी पिछले २ महीनो से सफ़ेद हाथी बनी हुई है । कैसे जिन नौकरियों के लिये लोगों की बहुत ज़रूरत थीं - अब लोग भटक रहें है । सरकारें सेवा नियमों में बदलाव कर रही है । बड़ी बड़ी कम्पनी लोगों को घर से काम करने के लिये कह रही है , मतलब दफ़्तर के लिए जगह की माँग में कमी , यातायात के साधनो की माँग में कमी , दफ़्तर के रख रखाव की सेवाओं की माँग में कमी । ये कुछ उदाहरण है - कैसे कोरोना वाइरस दुनिया को बदल रहा है एवं कैसे ये आने वाले समय पर अपना असर छोड़ जायेगा ।

कुछ लोगों व संस्थानों का मानना है कि दुनिया WW-II के बाद के सबसे बड़े आर्थिक संकट की ओर बड़ रही है । ईस के दूर गामी परिणाम होंगे । दुनिया को ईस से उबरने में २ - ३ वर्ष का या ज़ायद समय भी लग सकता है ।

ब्रिटिनका नामक संस्थान के अनुसार १७०० से अब तक संसार में ५ बड़े आर्थिक संकट आये, जिन्होंने पूरे संसार को प्रभावित क़िया :

१ - १७७२ का मुद्रा संकट
२ - १९२९-३९ का भयानक आर्थिक संकट
३ - १९७३ का तेल की क़ीमतों का उतार चढ़वा
४ - १९९७ का एशियाई संकट
५ - २००७ - २००८ का वित्तीय संकट

अब इन सब में एक नया नाम जुड़ जायेगा कोरोना या कोविड़ - १९ ।



जब हम उपरोक्त तलिका को देखते है तो दो बातें तो साफ़ हो जाती हैं - पहली हम विकास की आँधी होड़ में जितना आगे जाने का प्रयास कर रहे है हम उतना ही खुद को ख़तरे में डालते जा रहे है - देखें सारी दुनिया को प्रभावित करने वाले आर्थिक संकटों के होने का सिलसिला । पहले ईस प्रकार की घटनायें लगभग ३० वर्ष के अंतराल पर हो रही थीं । पर २००० में यह अंतराल घट कर १० - १२ वर्ष होता दिख रहा है । दूसरी बात यह कि जैसे जैसे दुनिया के देश पास आ रहे है - अलग अलग मुल्क़ों की अर्थव्यवस्था ना केवल पास आ रही है बल्कि एक दूसरे पर उनकी निर्भरताएं भी बढ़ती जा रही है । परिणामस्वरूप यदी एक अर्थविवस्था में कुछ बुरा होता है तो उसका प्रभाव सारी दुनिया पर होता है । प्रभाव कितना पड़ा ये अलग बात है, पर कोई भी अर्थव्यवस्था अछूती नहीं रह सकती ।

इस समस्या में राजनीतिक बदलाव तथा फेर बदल - आग में घी का काम करती है । राजनीतिक बदलाव तथा फेर बदल की वजह से भी बहुत से बदलाव होते है , जो हम सब पर सीधे या परोक्ष रूप से असर डालते है । कई बार हम प्रभावित होते हुए भी ये जान भी नहीं पाते की हम प्रभावित हो रहे है ।

तो अब हम यह मान सकते है कि इस संसार में कोई भी , इस में होने वाले बदलावों से अछूता नहीं रह सकता । चाहे तो परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रभाव तो पड़ना ही है । मानना या न मानना आप पर निर्भर करता है ।

तो हल क्या है ? कैसे आप इस समस्या से निजात पा सकते है ?

हम में से ज़्यादातर लोगों का जवाब होगा बचत करना । काफ़ी हद तक मैं भी इस बात से सहमत हूँ, पर पुरी तरह से नहीं 

आगे चलें उससे पहले दो सवालों पर गौर करना ज़रूरी है । पहला सवाल क्या बचत करना ही एक मात्र उपाय है ? दूसरा क्या बचत करना किसी को भी पुरी तरह से सुरक्षित कर सकता है ?

उपरोक्त दोनो सवालों का मेरे मतानुसार जवाब है - नहीं । अब आप पूछोगे क्यूँ । तो ज़रा सा सब्र रखें - हम अभी इस पर चर्चा करते है ।

आप बताये आज के समय में कोई भी अपनी आमदनियों का कितना भाग बचत के रूप में बचा पाता है - १० से ३० % , वो भी तब जब आप बहुत अच्छा कमा रहे हों । वर्ना ३ से ८ % की बचत करना भी लोहे के चने चबाने जैसा होता है । हम किसी भी तरह १०% के हिसाब से हर महीने बचत कर लेते है । पर घर परिवार में होने वाले आकस्मिक खर्चे  - जैसे किसी का जन्मदिन , विवाह, बीमारी , यात्रा ,   मरण व अन्य प्रकार के आकस्मिक खर्चे - आप की बचत का एक भाग चला गाया । 

दूसरा यदी किसी कारण से आपकी आय कम हो गई या आप का खर्चा बड़ गया तो आप पर दोहरा प्रभाव पड़ता है - 
१. आप बचत करने या जितनी बचत कर रहे थे उतनी बचत करने में सक्षम नहीं रहते ।
२. मुमकिन है कि आप को बचत का कुछ हिस्सा अपने खर्चो को पूरा करने में लगाना पड़े क्यूँकि आय कम हो गई है । 

 यकीनन बचत समस्या का एक मात्र व पुख़्ता समाधान नहीं है पर हाँ यह एक अच्छा समाधान ज़रूर है ।

फिर वही सवाल यदि बचत इस समस्या का समाधान नहीं है तो क्या है समाधान ?

जैसा कि मैंने अपने पिछले ब्लोग में बताया था कि आय के एक से अधिक स्रोत बनाना या विकसित करना एक टिकाऊ व उत्तम रणनीति है|

स्रोत जो सिर्फ़ तब कमाई दे जब आप काम करें वर्ना कोई आय नहीं तो भी हमारी समस्या हल नहीं होती ।

चलिये मैं आप को एक कहनी सुनता हूँ ।

एक क़सबे में दो मित्र रहते थे तथा वो पास की नदी से पानी ला कर क़सबे में बेच कर अपना जीवन यापन करते थे । दोनो का जीवन बड़े आराम से बीत रहा था ।

एक चीज़ थी जो दोनो को अलग करती थी । हमारा एक मित्र अपने ख़ाली समय में आराम करता , अपने दोस्तों के साथ समय बिताता  - यानी अपने जीवन का भरपूर मज़ा लेता । 

जब कि दूसरा युवक ख़ाली समय का उपयोग नदी से क़सबे तक एक पाइप लाईन बनाने में लगाता । क़सबे वाले व उसके अन्य मित्र उसका मज़ाक़ बनाते, परंतु वह अपने कार्य में लगा रहा । जल्द ही वह समय भी आ गया जब उसकी पाइप लाईन बन कर तैयार हो गई ।

पर जीवन बेहद कठिन है ।



उस क़सबे में एक बीमारी फेल गई । लोग बीमार पड़ने लगे । तेज ज्वर व बदन दर्द ने कई लोगो को अपनी चपेट में ले लिया । बीमार पड़े लोगो में हमारी कहानी के दोनो मुख्य किरदार भी थे ।

हमारा पहला मित्र कुछ ही दिनो में कंगाली की कगार पर खड़ा था - उसके पास खाने व दाव तक के लिये पैसे नहीं थे । वह पाई पाई के लिये मोहताज हो गया ।

जबकि हमारा दूसरा हीरो ना सिर्फ़ अपना भरण पोषण करने में सक्षम था वरण दूसरों की भी सहायता कर रहा था ।

क्या आप बता सकते हैं क्यूँ ?

इस राज़ को आप सब के साथ मै अगले ब्लोग मै साँझा करूँगा ।

तब तक आप अपने विचार साँझा करें - आप के विचारों की प्रतीक्षा में -


Comments

  1. Perfectly said

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    1. Thanks for your feedback, please subscribe also , so that you will get notifications about upcoming blogs.

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